RabiUlAwwal में या Mohammad की wiladat/Milad Un Nabi मालूमात

RabiUlAwwal में या Mohammad की wiladat/Milad Un Nabi मालूमात.

RabiUlAwwal में या Mohammad की wiladat Milad Un Nabi मालूमात1
Eid-E-Milad-Un-Nabi

मौलिदुन्नबी (Miladun-Nabi)

Milad Un Nabi ऐ रसूल की उम्मत जिस मुबारक मकान में अल्लाह (Allah) करीम के प्यारे प्यारे आख़िरी रसूल हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की विलादत (Wiladat) ( या'नी BIRTH ) हुई , तारीखे इस्लाम में उस मकाम का नाम " मौलिदुन्नबी सल्लल्लाहो अलय वसल्लम ( या'नी नबी की पैदाइश की जगह ) है , येह बहुत ही मुतबर्रक ( या'नी बा बरकत ) मकाम है । अल्लामा कुत्बुद्दीन फ़रमाते हैं : हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की विलादत (Wiladat) गाह पर दुआ कबूल होती है ।
ख़लीफ़ा हारून रशीद की अम्मीजान ने यहां मस्जिद ता'मीर करवाई थी , इस मस्जिद को कई मरतबा ता'मीर किया गया , येह इन्तिहाई खूब सूरत इमारत थी जिस के अक्सर हिस्से पर सोने से काम किया गया था ।

बा बरकत मकाम

अल्लामा अबुल हुसैन Mohammad बिन अहमद जुबैर अन्दलुसी इस मकाने आलीशान का जिक्र करते हुए ( अपने ज़माने के हिसाब से ) लिखते हैं : वोह मुक़द्दस जगह जहां अल्लाह (Allah) पाक के प्यारे नबी हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की विलादत (Wiladat) ( या'नी BIRTH ) हुई , उस बा बरकत जगह पर चांदी चढ़ाई गई थी ( येह जगह यूं लगती है ) जैसे छोटा सा पानी का तालाब हो जिस की सह चांदी की हो ।

येह मुबारक मकान रबीउल अव्वल (Rabi Ul Awwal) में पीर के दिन खोला जाता है क्यूं कि रबीउल अव्वल हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की विलादत का महीना और पीर विलादत (Wiladat) का दिन है , लोग इस मकान में बरकतें लेने के लिये दाखिल होते हैं । मक्कए मुकर्रमा में येह दिन हमेशा से “ यौमे मशहूद " है या'नी इस दिन लोग जम्अ होते

मकाने विलादत (Wiladat) में हाज़िरी की सआदत

अब येह सब मा'मूलाते मुबारका मौकूफ़ हो गए और आज कल इस मकाने अजमत निशान की जगह लायब्रेरी काइम है और उस पर बोर्ड लगा हुवा है । इस मकाने अज़मत निशान पर पहुंचने का आसान तरीका येह है कि आप कोहे मर्वह के किसी भी करीबी दरवाजे से बाहर आ जाइये । सामने नमाज़ियों के लिये बहुत बड़ा इहाता बना हुवा है , इहाते के उस पार येह मकाने आलीशान अपने जल्वे लुटा रहा है , दूर ही से नज़र आ जाएगा ।
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मीलादे मुस्तफा का बा काइदा आगाज़ करने वाला बादशाह

Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम के उम्मती ! सब से पहले मुरव्वजा तरीके के साथ बा काइदा जश्ने विलादत (Wiladat) मनाने का आगाज़ अरबल के बादशाह अबू सईद मुजफ्फ़र ने किया । आप की फ़रमाइश पर इब्ने दिहया ने मीलाद (Milad) के मौजूअ पर किताब " " लिखी । इस पर अबू सईद मुज़फ्फ़र ने इब्ने दिहया को एक हजार सोने के सिक्के बतौरे इन्आम अता फ़रमाए । ( जवाहिरुल बिहार ( उर्दू ) , 4/88 )

कैसा पाकीज़ा दौर था और कैसे कद्रदान आशिके रसूल Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम थे कि मौलूद शरीफ़ (Milad Sharif) की किताब लिखने पर इतना बड़ा इन्आम दिया । इस से येह भी पता चला कि पहले के बुजुर्ग अपने अन्दाज़ पर खूब जश्ने विलादत (जश्ने Wiladat) मनाया करते थे ।

मदीने (Madine) में अज़ीमुश्शान इज्तिमाए मीलाद।

हज़रते सय्यिदुना शैख़ अली बिन मूसा मदीनी (Madani) मालिकी फ़रमाते हैं : मस्जिदे नबवी शरीफ़ में एक ज़माने तक बारह रबीउल अव्वल (12 Rabi Ul Awwal) के दिन अजीमुश्शान इज्तिमाए मीलाद (Milad) होता था , जिस में बड़े बड़े इमाम बयान फ़रमाते । 12 रबीउल अव्वल (Rabi Ul Awwal) की सुब्ह का सूरज निकलते ही मीलाद शरीफ़ (Milad Sharif) की महफ़िल का आगाज़ हो जाता और मीलाद (Milad) पढ़ने के लिये चार अइम्मा ( या'नी चार इमाम ) मुकर्रर होते ।

महफ़िल शरीफ़ हरम शरीफ़ के सेहून में होती । पहले एक इमाम साहिब मीलाद शरीफ़ (Milad sharif) की मख्सूस कुरसी पर बैठ कर अहादीस पढ़ते फिर दूसरे इमाम हुजूर की विलादत शरीफ़ (Wiladat Sharif) पर बयान करते । फिर तीसरे इमाम हुजूर Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की रजाअत ( या'नी दूध पीने का जो ज़माना था) शरीफ़ की मख्सूस कुरसी पर बैठ कर अहादीस पढ़ते
फिर दूसरे इमाम हुजूर की विलादत शरीफ़ (Wiladat Sharif) पर बयान करते । फिर तीसरे इमाम हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की रज़ाअत ( या'नी दूध पीने का जो ज़माना था उस ) पर बयान करते फिर चौथे इमाम सफ़रे हिजरत पर बयान करते । आखिर में लोग शरबत पीते और बादाम का हल्वा ले कर वापस लौटते ।

नूर ही नूर

हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की मिलाद मानाने वालो ! हम भी जश्ने विलादत (Jashne Wiladat) मनाते हैं , काश ! अच्छों के तुफैल हमारी काविशें भी कबूल हो जाएं । हज़रत शाह वलिय्युल्लाह मुहद्दिस देहलवी फ़रमाते हैं : मैं मक्कए मुअज्जमा में मीलाद शरीफ़ (Milad Sharif) के दिन हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम के मकाने विलादत (Wiladat) पर हाज़िर था ,

सब लोग हुजूर नबिय्ये करीम हुजूरे अकरम सल्लल्लाहो अलय वसल्लमपर दुरूदो सलाम पढ़ रहे थे और आप हुजूरे अकरम सल्लल्लाहो अलय वसल्लम की विलादत (Wiladat) के वक्त जो ईमान अफ़ोज़ वाकिआत हुए थे उन का ज़िक्रे खैर कर रहे थे तो मैं ने उन अन्वार को देखा जो एक दम उस महफ़िल में ज़ाहिर हुए और मैं नहीं कह सकता कि येह अन्वार मैं ने अपनी ज़ाहिरी आंखों से देखे या रूह की आंखों से देखे अल्लाह (Allah) ही बेहतर जानता है ।

जब मैं ने उन अन्वारो तजल्लियात में गौर किया तो पता चला कि येह अन्वार उन फ़िरिश्तों की तरफ़ से ज़ाहिर हो रहे हैं जो इस तरह की नूरानी और बा बरकत महाफ़िल में शरीक होते हैं और मैं ने येह भी देखा कि उन फ़िरिश्तों से ज़ाहिर होने वाले अन्वार अल्लाह पाक (Allah Paak) की रहमत के अन्वार से मिल रहे हैं । ( फुयूजुल हरमैन , स . 26 )

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ऐसी मन्नत (Mannat) मानें जिसे पूरा कर सकें

ऐ मोहम्मद (Mohammad) के उम्मती ! यहां जो मन्नत mannat उन्हों ने मानी येह मन्नते mannate शई नहीं , मन्नते mannate उर्फी थी , मन्नते mannate उर्फी का पूरा करना वाजिब नहीं होता लेकिन इस तरह की जो जाइज़ मन्नतें Mannate मानी जाती हैं उन्हें पूरा कर देना चाहिये कि इसी में भलाई है । उन्हों ने मन्नत Mannat मानी अल्लाह पाक (Allah Paak) ने उन्हें शिफ़ा दे दी और वोह महफ़िले मीलाद (Milad) खड़े हो कर सुनते थे ।

ऐसा न हो कि जोश में आ कर आप सब भी इस तरह की मन्नत Mannat मानने लग जाएं क्यूं कि सारी महफ़िल खड़े हो कर सुनना सब के बस में नहीं होता और अगर बड़ा इज्तिमाअ हो और उस के बीच में आप खड़े हो जाएं तो इस से पीछे वालों को परेशानी होगी और बिठाने के लिये खींचेंगे और यूं मसाइल पैदा होंगे ।

शैतानी लोग

ऐ मिलाद (Milad) मानाने वाले मोहम्मद (Mohammad) के उम्मती सोश्यल मीडिया का ज़माना है बा'ज़ नादान लोग जो जश्ने विलादत (Jashne Wiladat) नहीं मनाते तरह तरह के वस्वसे फैला कर आशिकाने रसूल को इस नेक और बरकतों वाले काम से रोकने मुख़्तलिफ़ अन्दाज़ इख़्तियार करते हैं । येह " शयातीनुल इन्स " या'नी " शैतान आदमी " गुमराह करने की कोशिश करते और दिलों में शुकूको शुबुहात डालते हैं । आइम्मए दीन फ़रमाया करते कि " शैतान आदमी , शैतान जिन्न से सख्त तर होता है । " ( फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा , जि . 1 , स . 780 , 781 )

अल्लाह पाक के आख़िरी नबी , हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम ने हज़रते सय्यिदुना अबू ज़र गिफ़ारी से इर्शाद फ़रमाया : अल्लाह (Allah) की पनाह मांग शैतान आदमियों और शैतान जिन्नों के शर से । अर्ज की : क्या आदमियों में भी शैतान हैं ? फ़रमाया : हां । यानि की जितने गुमराह व बद मज़हब हैं वोह सब के सब शयातीनुल इन्स ( या'नी शैतान आदमियों ) में दाखिल हैं और इब्लीस के साथ साथ उन के शर से भी हमें पनाह मांगते रहना चाहिये ,

मगर अफ्सोस ! बहुत से मुसल्मान उन से खूब मेलजोल रखते हैं और उन की गुफ्त्गू भी खूब तवज्जोह से सुनते हैं । उन के मज़हबी प्रोग्रामों में भी शरीक होते हैं , उन का लिट्रेचर भी पढ़ते हैं , येही वज्ह है कि फिर अपने दीन से ना वाक़िफ़िय्यत की बिना पर शको शुब्हे में पड़ जाते हैं कि आया वोह सहीह हैं या हम ? और फिर बा'ज़ तो उन के जाल में इस क़दर फंस जाते हैं कि उन्हीं के गुन गाने लगते हैं और यहां तक कहते सुनाई देते हैं कि " येह भी तो सहीह कह रहे हैं ! "

हमदर्दाना मश्वरा !

सुन्नियत के किंग अहमद राजा खान RA ऐसों से बचने की ताकीद करते हुए फ़रमाते हैं : भाइयो ! तुम अपने नफ्अ नुक्सान को ज़ियादा जानते हो यानबी हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम, उन का हुक्म तो येह है कि शैतान वहाबी तुम्हे वसवसों में डालने आए तो आए तो सीधा जवाब येह दे दो कि " तू झूटा है " न येह कि तुम आप दौड़ दौड़ के उन ( काफ़िरों या बे दीनों और बद मज़हबों ) के पास जाओ ।

लोग अपनी जहालत से गुमान करते हैं कि हम अपने दिल से मुसल्मान हैं हम पर उन का क्या असर होगा ! हालां कि हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम फ़रमाते हैं : जो दज्जाल की खबर सुने उस पर वाजिब है कि उस से दूर भागे कि खुदा की क़सम ! आदमी उस के पास जाएगा और येह ख़याल करेगा कि मैं तो मुसल्मान हूं या'नी मुझे उस से क्या नुक्सान पहुंचेगा वहां उस के धोकों में पड़ कर उस का पैरव ( या'नी पैरवी करने वाला ) हो जाएगा ।

क्या दज्जाल एक उसी दज्जाल अख्बस ( या'नी नापाक तरीन दज्जाल ) को समझते हो जो आने यानि की जितने गुमराह व बद मज़हब हैं वोह सब के सब शयातीनुल इन्स ( या'नी शैतान आदमियों ) में दाखिल हैं और इब्लीस के साथ साथ उन के शर से भी हमें पनाह मांगते रहना चाहिये ,

मगर अफ्सोस ! बहुत से मुसल्मान उन से खूब मेलजोल रखते हैं और उन की गुफ्त्गू भी खूब तवज्जोह से सुनते हैं । उन के मज़हबी प्रोग्रामों में भी शरीक होते हैं , उन का लिट्रेचर भी पढ़ते हैं , येही वज्ह है कि फिर अपने दीन से ना वाक़िफ़िय्यत की बिना पर शको शुब्हे में पड़ जाते हैं कि आया वोह सहीह हैं या हम ? और फिर बा'ज़ तो उन के जाल में इस क़दर फंस जाते हैं कि उन्हीं के गुन गाने लगते हैं और यहां तक कहते सुनाई देते हैं कि " येह भी तो सहीह कह रहे हैं ! "

हमदर्दाना मश्वरा !

सुन्नियत के किंग अहमद राजा खान RA ऐसों से बचने की ताकीद करते हुए फ़रमाते हैं : भाइयो ! तुम अपने नफ्अ नुक्सान को ज़ियादा जानते हो यानबी हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम, उन का हुक्म तो येह है कि शैतान वहाबी तुम्हे वसवसों में डालने आए तो आए तो सीधा जवाब येह दे दो कि " तू झूटा है " न येह कि तुम आप दौड़ दौड़ के उन ( काफ़िरों या बे दीनों और बद मज़हबों ) के पास जाओ ।
RabiUlAwwal में या Mohammad की wiladat Milad Un Nabi मालूमात1
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लोग अपनी जहालत से गुमान करते हैं कि हम अपने दिल से मुसल्मान हैं हम पर उन का क्या असर होगा ! हालां कि हुजूरे अकरम Mohammad सल्लल्लाहो अलय वसल्लम फ़रमाते हैं : जो दज्जाल की खबर सुने उस पर वाजिब है कि उस से दूर भागे कि खुदा की क़सम ! आदमी उस के पास जाएगा और येह ख़याल करेगा कि मैं तो मुसल्मान हूं या'नी मुझे उस से क्या नुक्सान पहुंचेगा वहां उस के धोकों में पड़ कर उस का पैरव ( या'नी पैरवी करने वाला ) हो जाएगा ।

क्या दज्जाल एक उसी दज्जाल अख्बस ( या'नी नापाक तरीन दज्जाल ) को समझते हो जो आने वाला है , हाशा ! तमाम गुमराहों के दाई मुनादी ( या'नी दावत देने वाले बुलाने वाले ) सब दज्जाल हैं और सब से दूर भागने ही का हुक्म फ़रमाया और उस में येही अन्देशा बताया है । 

अहले सुन्नत वाल जमात हमेशा हक़ पर है और बरोजे क़यामत रहेंगे ईद मिलाद उन नबी (Eid और सरकार के विलादत (Wiladat) मानना ईदो के ईद (Eido Ki Eid) मनाना ईद मिलाद (Eid Rabi Ul Awwal) मानना ये सहाबा की सुन्नत है जश्ने ईद मिलाद उन नबी (Jashne Eid) मानना ये औलिया की सुन्नत है सरकार की जोरो शोरो से जश्ने विलादत (Jashne Wiladat) मानना ये सुन्नी ओलमा की सुन्नत है ( फ़तावा रज़विय्या मुखर्रजा , जि . 1 , स . 781 , 782 )

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