शान ऐ आला हज़रत Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan Barelwi

शान ऐ आला हज़रत Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan विलादते आला हज़रत 

शान ऐ आला हज़रत  Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan Barelwi
आला हज़रत ( Ala Hazrat) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)

ला हज़रत (Ala Hazrat), इमामे अहले सुन्नत हज़रते अल्लामा मौलाना अलहाज अल हाफ़िज़ अल कारी शाह इमाम अहमद रज़ा खान की विलादते बासआदत-आसान ( Birth ) बरेली शरीफ़ के महोल्ले जसोली में 10 शव्वालुल मुकर्रम 1272 हि . बरोज़ हफ्ता ब वक्ते जोह्र ब मुताबिक़ 14 जून 1856 ई . को हुई , आप का नामे मुबारक मुहम्मद है और दादा ने अहमद रज़ा कह कर पुकारा और इसी नाम से मशहूर हुए जब कि सने पैदाइश के ए'तिबार से आप का नाम अल मुख्तार ( 1272 हि . ) है । ( तज्किरए इमाम अहमद रज़ा , स . 3 , मक्तबतुल मदीना )

 

आला हज़रत (Ala Hazrat)  बचपन शरीफ़ की शानदार झल्कियां

( 1 ). रबीउल अव्वल 1276 हि . / 1860 ई . को तकरीबन 4 साल की उम्र में कुरआने पाक ख़त्म फ़रमाया इसी उम्र में फ़सीह अरबी में गुफ्त्गू फ़रमाई । 

( 2 ). रबीउल अव्वल 1278 हि . / 1861 ई . को तकरीबन 6 साल की उम्र में पहला बयान फ़रमाया । 

( ३ ). 1279 हि . / 1862 ई . को तकरीबन 7 साल की उम्र में रमज़ानुल मुबारक के रोजे रखना शुरूअ फ़रमाए । 

( 4 ). शव्वालुल मुकर्रम 1280 हि . / 1863 ई . को तकरीबन 8 साल की उम्र में मस्अलए विरासत  का शानदार जवाब लिखा । 

( 5 ). 8 साल ही की उम्र में नहूव की मशहूर किताब हिदायतन्नहूब पढ़ी और उस की अरबी शर्ह भी लिखी । 

( 6 ). शा'बानुल मुअज्जम 1286 हि . / 1869 ई . को 13 साल 4 माह और 10 दिन की उम्र में उलूमे दसिया से फ़रागत पाई , दस्तारे फजीलत हुई , 

( 7 ). उसी दिन फ़तवा नवीसी का बा काइदा आगाज़ फ़रमाया और दसै तदरीस का भी आगाज़ फ़रमाया । 


आला हज़रत  इमाम अहमद राजा खान के औलादो  का नाम 

आला हज़रत को ७ औलादे थी जिसमे से दो साहब जादे और ५ साहब जादिया थी।  आज भी हम उनकी  औलादो से फैज़ हासिल कररहे है आला हज़रात के साहब जादो का नाम 

  • आला हज़रत (Ala Hazrat) के २ साहब जादो का नाम

( १ ). हुज्जतुल इस्लाम इस्लाम मुफ्ती मोहम्मद हमीद खान रहमतुल्ला ताला अलै

( २ ). मुफ़्ती मुफ़्ती आजमे हिन्द मौलाना मुहम्मद मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान नूरी रहमतुल्ला ताला अलै

  • आला हज़रत (Ala Hazrat) के ५ साहब जादियो का नाम 

( १ ). मुस्तफई बेगम   

( २ ). कनीसे हसन 

( ३ ). कनीसे हुसैन 

( ४ ). कनीसे हसनैन 

( ५ ). मुर्तज़ई बेगम 

शान ऐ आला हज़रत  Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan Barelwi
आला हज़रत ( Ala Hazrat) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)


आला हज़रत के फ़तावा 

इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान  ने हज़ारों फ़तावा तहरीर फ़रमाए हैं , जब आप  ने 13 साल 10 माह 4 दिन की उम्र में पहला फ़तवा " हुर्मते रिज़ाअत " ( या'नी दूध के रिश्ते की हुर्मत ) पर तहरीर फ़रमाया तो आप के अब्बूजान मौलाना नकी अली ख़ान  ने आप की फ़काहत ( या'नी आलिमाना सलाहिय्यत ) देख कर आप को मुफ्ती के मन्सब पर फ़ाइज़ कर दिया। 

इस के बा वुजूद आ'ला हज़रत काफ़ी अर्से तक अपने अब्बूजान से फ़तावा चेक करवाते रहे और इस कदर एहतियात फ़रमाते कि अब्बूजान की तस्दीक़ के बिगैर फ़तवा जारी न फ़रमाते । आ'ला हज़रत (Ala Hazrat)  के 10 साल तक के फ़तावा जम्अ शुदा नहीं मिले , 10 साल के बाद जो फ़तावा जम्अ हुए वोह " अल अताया अल नाबाविया फील फतावा अल रज़ाविया " के नाम से 30 जिल्दों पर मुश्तमिल हैं और उर्दू ज़बान में इतने ज़खीम ( या'नी बड़े बड़े ) फ़तावा। 

मैं समझता हूं कि दुन्या में किसी मुफ्ती ने भी नहीं दिये होंगे , येह 30 जिल्दें ( 30 Volumes ) तकरीबन बाईस हज़ार ( 22000 ) सफ़हात पर मुश्तमिल हैं और इन में छे हज़ार आठ सो सेंतालीस ( 6847 ) सुवालात के जवाबात , दो सो छे ( 206 ) रसाइल और इस के इलावा हज़ारहा मसाइल ज़िम्नन जेरे बहूस बयान फ़रमाए हैं । अगर किसी ने येह जानना हो कि आ'ला हज़रत कितने बड़े मुफ्ती थे तो वोह आप के फ़तावा पढ़े , मुतअस्सिर हुए बिगैर नहीं रहेगा , 

मेरे आका आ'ला हज़रत ने अपने फ़तावा में ऐसे निकात ( या'नी पोइन्ट्स ) बयान फ़रमाए हैं अक्ल हैरान रह जाती है कि किस तरह आ'ला हज़रत  ने येह लिखे होंगे  ( माहनामा फैजाने मदीना , सफ़रुल मुज़फ्फर 1441 , मक्तबतुल मदीना ) 


एक बूंट पानी 

फ़क़ीहे आज़म हज़रते अल्लामा मुफ्ती शरीफुल हक़ अमजदी , फ़रमाते हैं : मुजद्दिदे आज़म आ'ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi) ने एक बार चालीस पेंतालीस दिन तक , 24 घन्टे में एक बूंट पानी के सिवा और कुछ नहीं खाया पिया , इस के बा वुजूद तस्नीफ़ , तालीफ़ , फ़तवा नवीसी ( या'नी किताबें लिखने , फ़तवा देने ) ,मस्जिद में हाज़िर हो कर नमाजे बा जमाअत अदा करने , इर्शादो तल्कीन , वारिदीन व सादिरीन ( या'नी आने वालों ) से मुलाकातें वगैरा मा'मूलात में कोई फर्क नहीं आया और न जो'फ़ो नक़ाहत ( या'नी कमज़ोरी ) के आसार ज़ाहिर हुए । ( नुज्हतुल कारी , 3/310 तस्हीलन , फ़रीद बुक स्टॉल ) 


12 सुवालात का जवाब 

शैख़ अब्दुल्लाह मिरदाद बिन अहमद अबुल खैर ने आ'ला हज़रत की ख़िदमत में नोट ( या'नी काग़ज़ी करन्सी ) के मुतअल्लिक 12 सुवालात पेश किये , आप ने एक दिन और कुछ घन्टों में उन के जवाबात लिखे और किताब का नाम " कीफलूल फ़ाकिहिल फहीम फ़ीअहकामी किर्तासीध दाराहीम  " तज्चीज़ फ़रमाया , उलमाए मक्कए मुकर्रमा जैसे शैखुल अइम्मा अहमद बिन अबुल खैर , मुफ्ती व काज़ी सालेह कमाल , हाफ़िजे कुतुबे हरम सय्यिद इस्माईल खलील , मुफ्ती अब्दुल्लाह सिद्दीक़ और शैख़ जमाल बिन अब्दुल्लाह ने किताब देख कर हैरत का इज़हार किया और खूब सराहा ( या'नी तारीफ़ की ) । 

येह किताब मुख़्तलिफ़ प्रेस ने कई बार प्रिन्ट की हत्ता कि 2005 ई . में बैरूत लुबनान से भी प्रिन्ट हुई , इस वक्त येह किताब एक यूनीवर्सिटी के “ एम.ए " के स्लेबस में भी शामिल है ।  ( माहनामा फैजाने मदीना , सफ़रुल मुज़फ्फ़र 1440 ) 


मुजद्दिदे दीनो मिल्लत 

इत्तिफ़ाके उलमाए अरबो अजम चौदहवीं सदी के मुजद्दिद , आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) इमाम अहमद रज़ा खान (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi) हैं बल्कि मौलाना अश्शैख़ मुहम्मद बिन अल अरबी अल जज़ाइरी ने आ'ला हज़रत का तज्किरए जमील ( खूब सूरत ज़िक्र ) इन अल्फ़ाज़ में फ़रमाया : " हिन्दूस्तान का जब कोई आलिम हम से मिलता है तो हम उस से मौलाना शैख़ अहमद रज़ा खां हिन्द के बारे में सुवाल करते हैं , अगर उस ने तारीफ़  की तो हम समझ लेते हैं कि येह सुन्नी ( या'नी सहीहुल अकीदा ) है और अगर उस ने मज़म्मत की ( बुरा भला कहा ) तो हम को यकीन हो जाता है कि येह शख्स गुमराह और बिद्अती है ( अन्वारुल हदीस , स . 19 , मक्तबतुल मदीना ) 


जन्नत की तरफ़ पहल करने वाला 

इमामे अहले सुन्नत अहबाब के शदीद इसरार पर अपने इन्तिकाल शरीफ़ से तीन साल क़ब्ल जबल पूर तशरीफ़ ले गए और वहां एक माह कियाम फ़रमाया । इस दौरान वहां के रहने वालों ने आप से खूब फैज़ पाया , इमामे अहले सुन्नत ने घरेलू ना चाकियों वालों की इस तरह रहनुमाई फ़रमाई कि जो अफ़ाद एक दूसरे से रिश्तेदारी ख़त्म कर चुके थे वोह आपस में सुल्ह के लिये तय्यार हो गए । 

दो भाई आ'ला हज़रत के मुरीद थे , एक दिन दोनों हाज़िर हुए , आप  ने दोनों की बात सुनने के बाद येह ईमान अफ़ोज़ जुम्ले इर्शाद फ़रमाए : " आप साहिबों का कोई मज़हबी तख़ालुफ़ ( या'नी मुखालफ़त ) है ? कुछ नहीं । आप दोनों साहिब आपस में पीर भाई हैं नस्ली रिश्ता छूट सकता है लेकिन इस्लामो सुन्नत और अकाबिरे सिल्सिला से अक़ीदत बाकी है तो येह रिश्ता नहीं टूट सकता । 

दोनों हकीकी भाई और एक घर के , तुम्हारा मज़हब एक , रिश्ता एक , आप दोनों साहिब एक हो कर काम कीजिये कि मुखालिफ़ीन को दस्त अन्दाज़ी का मौक़अ न मिले । खूब समझ लीजिये ! आप दोनों साहिबों में जो सब्कत ( या'नी पहल ) मिलने में करेगा जन्नत की तरफ़ सब्कत करेगा । " आप के इन जुम्लों का फ़ौरन असर ज़ाहिर हुवा , नाराजी भुला कर उसी वक्त एक दूसरे के गले लग गए ।( मल्फूज़ाते आ'ला हज़रत , स . 267 मुलख्ख़सन , मक्तबतुल मदीना )

शान ऐ आला हज़रत  Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan Barelwi
आला हज़रत ( Ala Hazrat) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)


बुन्दों का तोहफा 

आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) ने एक दिन मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी से फ़रमाया  " मुझे अपनी दो बच्चियों के लिये बुन्दे ( Earrings ) चाहिएं । " मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी ने हुक्म की ता'मील करते हुए एक मशहूर दुकान से बुन्दों की बहुत ही खूब सूरत दो जोड़ियां ला कर पेश कर दीं । आ'ला हज़रत को बुन्दे बहुत पसन्द आए , सामने ही मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी की दोनों नन्ही मुन्नी साहिब ज़ादियां बैठी हुई थीं , 

आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) ने फ़रमाया : " ज़रा इन बच्चियों को पहना कर देखता हूं कि कैसे लगते हैं " येह फ़रमा कर आ'ला हज़रत ने खुद अपने मुबारक हाथों से दोनों बच्चियों को बुन्दे पहनाए और दुआएं अता फ़रमाई । इस के बाद आ'ला हज़रत ने बुन्दों की कीमत पूछी , मुफ़्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी  ने अर्ज किया : हुजूर ! कीमत अदा कर दी है ( आप बस बुन्दे क़बूल फ़रमाइये ) । इस के बाद आप अपनी बेटियों के कानों से बुन्दे उतारने लगे ( येह सोच कर कि येह बुन्दे आ'ला हज़रत की साहिब ज़ादियों के लिये हैं ) 

लेकिन आ'ला हज़रत ने फौरन इर्शाद फ़रमाया : " रहने दीजिये ! मैं ने येह बुन्दे अपनी इन्ही दो बच्चियों के लिये तो मंगवाए थे " इस के बाद आप ने मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी को बुन्दों की कीमत भी अता फ़रमाई । ( इक्रामे इमाम अहमद रज़ा , स . 90 मफ्हूमन , इदारए सऊदिया )

 

सात पहाड़ सरकारे आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) 

जबल पूर के सफ़र में किश्ती ( Ship ) में सफ़र फ़रमा रहे थे “ किश्ती " निहायत तेज़ जा रही थी , लोग आपस में मुख़्तलिफ़ बातें कर रहे थे , इस पर आप ने इर्शाद फ़रमाया : " इन पहाड़ों को कलिमए शहादत पढ़ कर गवाह क्यूं नहीं कर लेते ! " ( फिर फ़रमाया :) एक साहिब का मा'मूल था जब मस्जिद तशरीफ़ लाते तो सात ढेलों ( Stones या'नी पथ्थरों ) को जो बाहर मस्जिद के ताक में रखे थे अपने कलिमए शहादत का गवाह कर लिया करते। 

इसी तरह जब वापस होते तो गवाह बना लेते । बा'दे इन्तिकाल मलाएका ( या'नी फ़िरिश्ते ) उन को जहन्नम की तरफ़ ले चले , उन सातों ढेलों ने सात पहाड़ बन कर जहन्नम के सातों दरवाजे बन्द कर दिये और कहा : " हम इस के कलिमए शहादत के गवाह हैं । " उन्हों ने नजात पाई । तो जब ढेले पहाड़ बन कर हाइल ( या'नी रुकावट ) हो गए तो येह तो पहाड़ हैं । 

हदीस में : " शाम को एक पहाड़ दूसरे से पूछता है : क्या तेरे पास आज कोई ऐसा गुज़रा जिस ने ज़िक्रे इलाही किया ? वोह कहता है : न । येह कहता है : मेरे पास तो ऐसा शख्स गुज़रा जिस ने ज़िक्रे इलाही किया । वोह समझता है कि आज मुझ पर ( उसे ) फ़ज़ीलत है । " येह ( फ़ज़ीलत ) सुनते ही सब लोग ब आवाजे बुलन्द कलिमए शहादत पढ़ने लगे , मुसल्मानों की ज़बान से कलिमा शरीफ़ की सदा ( Sound ) बुलन्द हो कर पहाड़ों में गूंज गई । ( मल्फूजाते आ'ला हज़रत , स . 313 , 314 ) 


हृदीस शरीफ़ पढ़ाने का अन्दाजे मुबारक 

हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान लिखते हैं : आ'ला हज़रत (Ala Hazrat)  कुतुबे हदीस खड़े हो कर पढ़ाया करते थे , देखने वालों ने हम को बताया कि खुद भी खड़े होते , पढ़ने वाले भी खड़े होते थे उन का येह फेल ( या'नी अन्दाज़ ) बहुत ही मुबारक है । ( जाअल हक़ , स . 209 , कादिरी पब्लीकेशन्ज़ ) 


अमीरुल मुअमिनीन फ़िल हदीस 

इमामे अहले सुन्नत , इमाम अहमद रज़ा खान (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)  जिस तरह दीगर कई उलूम में अपनी मिसाल आप थे , यूंही फ़न्ने हदीस में भी अपने जमाने के उलमा पर आप को ऐसी फ़ौकिय्यत ( Precedence ) हासिल थी कि आप के ज़माने के अज़ीम आलिम , 40 साल तक दर्से हदीस देने वाले शैखुल मुहद्दिसीन हज़रत अल्लामा वसी अहमद सूरती ने आप को " अमीरुल मुअमिनीन फ़िल हदीस " का लकब दिया । 

( माहनामा अल मीज़ान , बम्बई , इमाम अहमद रज़ा नम्बर एप्रिल , मई , जून 1976 ई . , स . 247 ) 


मदीने से महब्बत 

मुबल्लिगे इस्लाम हज़रते अल्लामा मौलाना शाह अब्दुल अलीम सिद्दीकी मेरठी हरमैने तय्यिबैन से वापसी पर आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और निहायत खूब सूरत आवाज़ में आप की शान में मन्क़बत पढ़ी तो सय्यिदी आ'ला हज़रत ने इस पर कोई ना गवारी का इज़हार नहीं फ़रमाया बल्कि इर्शाद फ़रमाया : मौलाना ! 

मैं आप की ख़िदमत में क्या पेश करूं ? ( अपने बहुत कीमती इमामे ( Turban ) की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया :) अगर इस इमामे को पेश करूं तो आप उस दियारे पाक ( या'नी मुबारक शहर मदीनए पाक ) से तशरीफ़ ला रहे हैं , येह इमामा आप के क़दमों के लाइक भी नहीं । 

मेरे कपड़ों में सब से बेश कीमत ( या'नी कीमती ) एक जुब्बा है , वोह हाज़िर किये देता हूं और काशानए अक्दस से सुर्ख काशानी मख्मल का जुब्बए मुबारका ला कर अता फ़रमा दिया , जो ( उस वक़्त के ) डेढ़ सो रुपै से किसी तरह कम कीमत का न होगा । मौलाना मम्दूह ( या'नी शाह अब्दुल अलीम मेरठी ) ने खड़े हो कर दोनों हाथ फैला कर ले लिया । आंखों से लगाया , लबों से चूमा , सर प रखा और सीने से देर तक लगाए रहे । 


ख्वाहिशे आला हज़रत (Ala Hazrat) 

सय्यिदी आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) ने मौलाना इरफ़ान बेसल पूरी को एक ख़त लिखा जिस के आखिर में कुछ यूं लिखते हैं : वक्ते मर्ग ( या'नी इन्तिकाल का वक़्त ) क़रीब है और अपनी ख्वाहिश येही है कि मदीनए तय्यिबा में ईमान के साथ मौत और बक़ीए मुबारक में खैर के साथ दफ़्न ( Burial ) नसीब हो । ( मक्तूबाते इमाम अहमद रज़ा , स . 202 मुल्तकतन ) 

सायए दीवारो खाके दर हो या रब और रज़ा ख्वाहिशे देहीमे कैसर , शौके तख्ने जम नहीं ( हदाइके बखिशश , मक्बतुल मदीना ) शर्हे कलामे रज़ा : या अल्लाह पाक ! तेरे प्यारे प्यारे और आखिरी नबी के क़दमों में मदीनए पाक में मुझे मद्न नसीब हो जाए , मुझे रूम और ईरान के बादशाहों के तख्तो ताज की कोई ज़रूरत नहीं । 


कलामे आला हज़रत की शान / Ala Hazrat Naat

आ'ला हज़रत का कलाम (Ala Hazrat Naat) कुरआनो हदीस के ऐन मुताबिक़ है और इस में भी शक नहीं कि आप की लिखी हुई एक एक ना'त फ़न्ने शाइरी ( Poetic Skills ) में भी दरजए कमाल पर है । अल्लाह पाक के सच्चे नबी  की महबबत से आ'ला हज़रत के जिस्म का रुवां रुवां लबरेज़ था , इसी तरह आप की ना'तिया (Ala Hazrat Naat) शाइरी का हर हर लफ़्ज़ भी इश्के रसूल में डूबा हुवा नज़र आता है । आज तकरीबन सो साल गुज़रने के बा वुजूद भी आ'ला हज़रत के लिखे हुए अश्आर  दिलों में इश्के रसूल पैदा करते और यादे महबूब में तड़पा देते हैं (Ala Hazrat Naat)

आप के अरबी अश्आर की मज्मूई तादाद मुख़्तलिफ़ अक्वाल के मुताबिक़ 751 या 1145 है । ( मौलाना इमाम अहमद रज़ा की ना'तिया शाइरी , जब कि अरबी ज़बान में से क़सीदताने राइअतान मशहूर " कलाम " हैं जो आप ने 1300 हि . में आलिमे कबीर 1 मौलाना शाह फज्ले रसूल बदायूनी के सालाना उर्से मुबारक के मौक़अ पर 27 साल 5 माह की उम्र में पेश किये थे । अस्हाबे बद्र की निस्बत से दोनों कसीदे 313 अश्आर पर मुश्तमिल हैं । (Ala Hazrat Naat) 

दोनों मुबारक क़सीदों में कुरआनो हदीस के इशारात और अरबी इम्साल व मुहावरात का खूब इस्ति'माल किया गया है । मशहूरे ज़माना नातिया किताब (Ala Hazrat Naat) “ हृदाइके बखिशश " में एक कौल के मुताबिक़ 2781 अश्आर हैं । और उर्दू कलाम का अरबी तरजमा भी " सफ्वतुल मदीह " के नाम से प्रिन्ट हो चुका है । अगर येह कहा जाए कि आ'ला हज़रत  के तरजमए कुरआन " कन्जुल ईमान " की तरह आप की नातिया शाइरी को अवाम में आम करने में सुन्नियत का बहुत बड़ा किरदार है तो बे जा न होगा । (Ala Hazrat Naat)


आका की तरफ़ से हर साल कुरबानी 

आ'ला हज़रत (Ala Hazrat) अपने बारे में फ़रमाते हैं : फ़कीर का मा'मूल है कि कुरबानी हर साल अपने हज़रत वालिदे माजिद की तरफ़ से करता है और उस का गोश्त पोस्त ( या'नी खाल ) सब तसद्दुक ( या'नी सदक़ा ) कर देता है और एक कुरबानी हुजूरे अक्दस  की तरफ़ से करता है और उस का गोश्त पोस्त सब नजे हज़राते सादाते किराम करता है । ( या'नी अल्लाह पाक मेरी और सब मुसल्मानों की तरफ़ से क़बूल फ़रमाए , आमीन । ) ( फ़तावा रज़विय्या , 20/256 , रज़ा फ़ाउन्डेशन ) 


गरीब सादाते किराम से महब्बते आ'ला हज़रत (Ala Hazrat)

आ'ला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , इमाम अहमद रज़ा खान सादाते किराम का बहुत ख़याल फ़रमाते , यहां तक कि जब कोई चीज़ तक्सीम फ़रमाते तो सब को एक एक अता फ़रमाते और सय्यिद साहिबान को दो देते । आप फ़रमाते हैं , मैं कहता हूं बड़े माल वाले अगर अपने खालिस मालों से बतौरे हदिय्या इन हज़राते उल्या ( या'नी बुलन्द मर्तबा साहिबान ) की ख़िदमत न करें तो इन ( मालदारों ) की ( अपनी ) बे सआदती है , वोह वक़्त याद करें जब इन हज़रात ( या'नी सादाते किराम ) के जद्दे अकरम के सिवा जाहिरी आंखों को भी कोई मल्जा व मावा ( या'नी पनाह का ठिकाना ) न मिलेगा , 

क्या पसन्द नहीं आता कि वोह मा सदके में उन्हीं की सरकार ( या'नी बारगाह ) से अता हुवा , रोब छोड़ कर फिर वैसे ही खाली हाथ जेरे ज़मीन ( या'नी कब्र में ) जाने वाले हैं , उन की खुशनूदी के लिये उन के पाक मुबारक बेटों ( या'नी सय्यिदों ) पर उस का एक हिस्सा सर्फ ( या'नी खर्च ) किया करें कि उस सख़्त हाजत  के दिन ( या'नी बरोजे कियामत ) उस जवाद करीम , रऊफुर्रहीम के भारी इन्आमों , अज़ीम इक्रामों से मुशर्रफ़ हों । 


सय्यिद के साथ भलाई करने का अजीम सिला 

अल्लाह पाक के आखिरी नबी मुहम्मदे अरबी फ़रमाते हैं : जो मेरे अहले बैत ( Descendants ) में से किसी के साथ अच्छा सुलूक करेगा , मैं रोज़े कियामत इस का बदला उसे अता फ़रमाऊंगा । 

 रहमते कौनैन , नानाए हसनैन सल्लल्लाहो अलै-वसल्लम फ़रमाते हैं : जो शख़्स औलादे अब्दुल मुत्तलिब में किसी के साथ दुन्या में नेकी करे उस का सिला देना मुझ पर लाज़िम है जब वोह रोजे कियामत मुझ से मिलेगा । 

सय्यिद से भलाई करने वाले को क़ियामत में आका की ज़ियारत होगी अल्लाहु अक्बर ! अल्लाहु अक्बर ! कियामत का दिन , वोह कियामत का दिन , वोह सख़्त ज़रूरत सख़्त हाजत का दिन , और हम जैसे मोहताज , और सिला अता फ़रमाने को मुहम्मद  सा साहिबुत्ताज , खुदा जाने क्या कुछ दें और कैसा कुछ निहाल फ़रमा दें , एक निगाहे लुत्फ़ उन की जुम्ला मुहिम्माते दो जहां को ( या'नी दोनों जहां की तमाम मुश्किलात के हल के लिये ) बस है , बल्कि खुद येही सिला ( बदला ) करोड़ों सिले ( बदलों ) से आ'ला व अन्फ़स ( या'नी नफ़ीस तरीन ) है , जिस की तरफ़ कलिमए करीमा , 15 ) ( जब वोह रोजे कियामत मुझ से मिलेगा ) इशारा फ़रमाता है , ब लफ़्जे " " ता ' बीर फ़रमाना ( या'नी " जब " का लफ़्ज़ कहना ) रोजे कियामत वा'दए विसाल व दीदारे महबूबे ज़िल जलाल का मुज्दा सुनाता है । ( गोया सय्यिदों के साथ भलाई करने वालों को कियामत के रोज़ ताजदारे रिसालत की ज़ियारत व मुलाकात की खुश खबरी है ) मुसल्मानो ! और क्या दरकार है ? दौड़ो और इस दौलतो सआदत को लो । ( फ़तावा रज़विय्या , 10/105 ता 106 )  

शान ऐ आला हज़रत  Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan Barelwi
आला हज़रत ( Ala Hazrat) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)


आ'ला हज़रत की चन्द खूबियां / (Ala Hazrat History)

( 1 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय पांचों नमाजें बा जमाअत तक्बीरे ऊला के साथ मस्जिद में अदा फ़रमाया करते । (Ala Hazrat History)

( 2 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय  को इल्मे तौकीत ( या'नी वोह इल्म जिस के जरीए दुरुस्त वक्त मा'लूम किया जाए ) इस क़दर कमाल हासिल था कि दिन को सूरज और रात को सितारे देख कर घड़ी मिला लेते कभी एक मिनट का भी फ़र्क न हुवा । (Ala Hazrat History)

( 3 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय  ने अपने और अपने भाइयों के तमाम शहज़ादों ( या'नी बेटों ) का नाम " मुहम्मद " रखा । (Ala Hazrat History)

( 4 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय  को तब्अन हर मश्रूब से ज़ियादा अज़ीज़ " ज़मज़म शरीफ़ " महबूबो मरगूब ( या'नी पसन्दीदा ) था । (Ala Hazrat History)

( 5 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय  ने मुख़्तलिफ़ मौजूआत पर कमो बेश एक हज़ार किताबें लिखीं , जिन में से चन्द येह हैं : इल्मुल अकाइद में 31 , इल्मुल कलाम में 17 , इल्मे तफ़्सीर में 6 , इल्मे हदीस में 11 , उसूले फ़िक्ह में 9 , फ़िक्ह में 150 , इल्मुल फ़ज़ाइल में 30 , इल्मुल मनाकिब में 18 , और इल्मे मुनाज़रा में 18 । (Ala Hazrat History) 

( 6 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय गरीबों की दा'वत कबूल फ़रमा लेते थे अगर वहां आप के मिज़ाज के मुताबिक़ खाना न होता तो मेज़बान ( Host ) पर इस का इज़हार न फ़रमाते बल्कि खुशी खुशी खा लेते । (Ala Hazrat History) 

( हयाते आ'ला हज़रत , 1/123 मुलख्वसन ) 

( 7 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय  हमेशा गरीबों की इमदाद करते , उन्हें कभी खाली हाथ न लौटाते बल्कि आखिरी वक्त भी रिश्तेदारों  रहते । को वसिय्यत फ़रमाई कि गरीबों का ख़ास ख़याल रखना , उन को ख़ातिर दारी से अच्छे अच्छे और लज़ीज़ खाने अपने घर से खिलाया करना और किसी गरीब को बिल्कुल न झिड़क्ना । (Ala Hazrat History)

( तज़्किरए इमाम अहमद रज़ा , स . 14 ) 

( 8 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय कार्ड या खुले ख़त ( Letter ) में या आयते करीमा या इस्मे जलालत " अल्लाह " या अल्लाह पाक के आख़िरी नबी " मुहम्मद " सल्ललाहो अलैय वसल्लम का मुबारक नाम या दुरूद शरीफ़ बे अदबी के ख़याल से लिखने से मन्अ फ़रमाते । आ'दादे " idais 786 दाई तरफ़ से लिखते । 

( 9 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)  रहमतुल्ला अलैय महफ़िले मीलाद शरीफ़ में शुरू से आखिर तक अदबन दो जानू ( जैसे नमाज़ में अत्तहिय्यात की सूरत में बैठते हैं ) बैठे रहते , सिर्फ सलातो सलाम पढ़ने के लिये खड़े होते । यूं ही बयान फ़रमाते और चार पांच घन्टे तक मुकम्मल दो जानू ही मिम्बर शरीफ़ पर तशरीफ़ फ़रमा ( हयाते आ'ला हज़रत , 1/98 )  

( 10 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी रहमतुल्ला अलैय का सोने का अन्दाज़ भी बड़ा ईमान अफ़ोज़ था , आम लोगों की तरह न सोते बल्कि सोते वक्त हाथ के अंगूठे ( Thumb ) को शहादत की उंगली पर रख लेते ताकि उंग्लियों से लफ़्ज़ " अल्लाह " बन जाए और पाउं फैला कर कभी न सोते बल्कि सीधी करवट ( Right Side ) लैट कर दोनों हाथों को मिला कर सर के नीचे रख लेते और पाउं मुबारक समेट लेते , इस तरह जिस्म से लफ़्ज़ " मुहम्मद ( बन जाता । ( हयाते आ'ला हज़रत , 1/99 मफ्हूमन ) (Ala Hazrat History)

( 11 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)  रहमतुल्ला अलैय वाकेई फ़नाफ़िर्रसूल थे । अक्सर फ़िराके मुस्तफा में गमगीन रहते और सर्द आहे ( Sigh ) भरा करते । 

( 12 ) इमाम अहमद राजा खान बरेलवी (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi)  रहमतुल्ला अलैय ने सारी ज़िन्दगी कोई भी सुब्ह ऐसी नहीं की जो नामे " इलाही से शुरूअ न होती हो और किसी भी दिन की आखिरी तहरीर दुरूद शरीफ़ के सिवा किसी और लफ़्ज़ पर ख़त्म नहीं फ़रमाई , सब से आख़िरी तहरीर 25 सफ़रुल मुज़फ्फर 1340 हि . को वफ़ात शरीफ़ से चन्द लम्हे पहले येह लिखी। (Ala Hazrat History)


इन्तिकाल शरीफ़ 

सय्यिदी आ'ला हज़रत (Ala Hazrat)  ने अपनी वफ़ात शरीफ़ 28 अक्टूबर 1921 सीई या 25 सफार 1340 एएच से 4 माह 22 दिन पहले खुद अपने इन्तिकाल शरीफ़ की खबर दे दी थी , आप ने अपने साहिब ज़ादे हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हामिद रज़ा ख़ान  को अपनी हयात ( या'नी मुबारक ज़िन्दगी ) ही में अपना जा नशीन ( Successor ) मुकर्रर फ़रमाया और अपनी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने की वसिय्यत फ़रमाई चुनान्चे अल्लामा मौलाना हामिद रज़ा खान ने ही आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई । ( हयाते आ'ला हज़रत , हिस्सए सिवुम , स . 297 मुलख्खसन ) 



अल्लाहु रब्बुल इज़्ज़त की उन पर रहमत हो और उन के सदके हमारी बे हिसाब मरिफ़रत हो । आप को हमारी पोस्ट अछि लगी तो शेयर जरूर करे इसले सवाब की नियत से 


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5 Comments

  1. https://iislamreligion.blogspot.com/2020/09/imam-ahmed-raza-photo-urus-mubarak.html

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  2. Ahle Hadees is best..😍❤👌✌

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  3. Hme Shi काम करने की और बोलने की सुनने की त ा तेफीक अता फरमा आऐ अमीन

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