दुआ (Dua) का मर्तबा, मकबूलियत और रोज पढ़े जाने वाली क़ुरान - हदीस दुआए " islameligion "


Dua-दुआ का मर्तबा, मकबूलियत और रोज पढ़ने वाली दुआए - List of Dua 
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(Most Powerful Dua) कबूलिय्यते दुआ में ताख़ीर का एक सबब 

अवक़ात कबूलिय्यते दुआ (Dua) की ताख़ीर में काफी मस्लहतें भी होती हैं जो हमारी समझ में नहीं आतीं । हुजूर , सरापा नूर , फैज़ गन्जूर सल्ललाहो अलय वसल्लम का फ़रमाने पुर सुरूर है ,

जब अल्लाह का कोई प्यारा दुआ (islamic religion Dua) करता है , तो अल्लाह तआला जिब्रईल से इर्शाद फ़रमाता है , " ठहरो ! अभी न दो ताकि फिर मांगे कि मुझ को इस की आवाज़ पसन्द है ।

" और जब कोई काफ़िर या फ़ासिक दुआ (fake-how to make Dua) करता है , फ़रमाता है , " ऐ जिब्रईल  इस का काम जल्दी कर दो , ताकि फिर न मांगे कि मुझ को इस की आवाज़ मक्रूह ( या'नी ना पसन्द ) है ।

इस्लाम में दुआ की अहमियत / Islamic Religion Dua 

हिकायत हज़रते सय्यदुना यहूया बिन सईद बिन कत्तान  ने अल्लाह को ख़्वाब में देखा , अर्ज की , इलाही ! मैं अक्सर दुआ करता हूं । और तू क़बूल नहीं फ़रमाता ? हुक्म हुवा ," ऐ यहूया ! मैं तेरी आवाज़ को पसंद करता हु दोस्त रखता हूं । इस वासिते तेरी दुआ (Dua) की कबूलिय्यत में ताख़ीर करता हूं ।

अभी जो हदीसे पाक और हिकायत गुज़री उस में येह बताया गया है कि अल्लाह 5 को अपने नेक बन्दों की गिर्या व जारी पसन्द है तो यूं भी बसा अवकात कबूलिय्यते दुआ (islamic dua) में ताख़ीर होती है । अब इस मस्लहत को हम कैसे समझ सकते हैं ! बहर हाल जल्दी नहीं मचानी चाहिये । अहसनुल विआअ सफ़हा 33 में आदाबे दुआ बयान करते हुए हज़रते रईसुल मु - तकल्लिमीन मौलाना नकी अली खान फ़रमाते हैं : जल्दी मचाने वाले की दुआ कबूल नहीं होती ( दुआ के आदाब में से येह भी है कि ) Importance Dua In Islam दुआ के क़बूल में जल्दी न करे । 

 

हदीस शरीफ़ में है कि खुदाए तआला तीन आदमियों की दुआ (Dua) क़बूल नहीं करता । 

  1. एक वोह कि गुनाह की दुआ मांगे Mistek Powerfull dua । 
  2. दूसरा वोह कि ऐसी बात चाहे कि कत्ए रेहूम हो । 
  3. तीसरा वोह कि क़बूल में जल्दी करे कि मैं ने दुआ मांगी अब तक क़बूल नहीं हुई । इस हदीस में फ़रमाया गया है कि ना जाइज़ काम की दुआ न मांगी जाए कि वोह क़बूल नहीं होती । नीज़ किसी रिश्तेदार का हक़ जाएअ होता हो ऐसी दुआ भी न मांगें और दुआ की क़बूलिय्यत के लिये जल्दी भी न करें वरना दुआ कबूल नहीं की जाएगी ।

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15 क़ुरआनी दुआए - (Most poweful list of islamic 15 हिंदी (Hindi ),

 अर्बी  (arabi ) में  और दुआ dua का तर्जुमा (Meaning))


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(Important Dua In islam / Dua In Arabic / Dua In Hindi)


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दिन दुनिया में रोज पढ़ेःजाने वाली दुआए : (Islamic arabic religion english - hindi meaning list of dua  most powerful) 

दुआ(Dua) यह मोमिन की अल्लाह से गुफ्तगू करने का एक जरिया है अक्सर मोमिन इंसान परेशानी की हालत में ख़ुशी के मौके पर या दीगर कोई वक़्त में जब गम, खुश, जो भी होता है तो वो खास कर  अल्लाह से बात करता है यक़ीनन अल्लाह हर जगह मौजूद है (Most Powerful Dua)

वो इंसान की बात दुआ(Dua) के रूप में कही से भी सुनता है और इंसान की नियत की मुताबित वो  बन्दे मोमिन को अता फरमाता है इंसान की हर चीज की दुआ होती है , या मोमिन इंसान की दुआ छोटी से दुआ या मोमिन इंसान नमाज़ की दुआ या नमाज़ में  मांगने वाली दुआ या मोमिन इंसान की दौलत पानी की दुआ और वकी मुसीबत दूर करने की दुआ या रोजी में बरक़त की दुआ और तो और मुस्लमान  सफर में भी होता है तो अल्लाह से सफर  पहले करता है दुआ इंसान की एक हर बात में मेराज है दुआ इंसान को अल्लाह से मिलती है (islamic dua in english)
और यक़ीनन अल्लाह के रसूल के वसीले से जो दुआ(Dua) मांगी जाए कहे फिर वो हर चीज की दुआ, छोटी सी दुआ, नमाज की दुआ, दौलत पाने की दुआ, मुसीबत दूर करने की दुआ, रोजी की दुआ, सफर की दुआ, इंशाअल्लाह अल्लाह रसूल के सदके में पूरी होती है (how to make Dua)

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दुआ, हर चीज की दुआ, छोटी सी दुआ, नमाज की दुआ, दौलत पाने की दुआ, मुसीबत दूर करने की दुआ, रोजी की दुआ, सफर की दुआ,

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दुआ, हर चीज की दुआ, छोटी सी दुआ, नमाज की दुआ, दौलत पाने की दुआ, मुसीबत दूर करने की दुआ, रोजी की दुआ, सफर की दुआ,


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" दुआ (Dua) मोमिन का हथियार है (power Of momin) " के सत्तरह 17 हुरूफ की निस्बत से दुआ मांगने के सत्तरह हुरूफ (hindi religion dua list) 


( 1 ) हर रोज़ कम अज़ कम बीस बार दुआ करना वाजिब है । नमाजियों का येह वाजिब , नमाज़ में सू - रतुल फ़ातिहा से अदा हो जाता है कि ( तर - जमए कन्जुल ईमान : हम को सीधा रास्ता चला ) भी दुआ और  ( तर - जमए कन्जुल ईमान : सब खूबियां अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का ) कहना भी दुआ है ।(dua_english)

( 2 ) दुआ में हद से न बढ़े । म - सलन अम्बियाए किराम  का मर्तबा मांगना या आस्मान पर चढ़ने की तमन्ना करना । नीज़ दोनों जहां की सारी भलाइयां और सब की सब खूबियां मांगना भी मन्अ है कि इन खूबियों में मरातिबे अम्बिया भी हैं जो नहीं मिल सकते । (meaning_dua)

( 3 ) जो मुहाल ( या'नी ना मुम्किन ) या क़रीब ब मुहाल हो उस की दुआ न मांगे लिहाजा हमेशा के लिये तन्दुरुस्ती आफ़िय्यत मांगना कि आदमी उम्र भर कभी किसी तरह की तक्लीफ़ में न पड़े येह मुहाले आदी की दुआ मांगना है । यूंही लम्बे कद के आदमी का छोटा क़द होने या छोटी आंख वाले का बड़ी आंख की दुआ करना मम्नूअ है कि येह ऐसे अम्र की दुआ है जिस पर क़लम जारी हो चुका है । (list of dua)

( 4 ) गुनाह की दुआ न करे कि मुझे पराया माल मिल जाए कि गुनाह की तलब गुनाह | ( स . 82 ) (islamic dua in english)

( 5 ) कत्ए रेहूम ( म - सलन फुलां करना भी रिश्तेदारों में लड़ाई हो जाए ) की दुआ न करे । (how to make)

( 6 ) अल्लाह  से सिर्फ हक़ीर चीज़ न मांगे कि परवर्द गार - ग़नी है बल्कि अपनी तमाम तवज्जोह उसी की तरफ़ रखे और हर चीज़ का उसी से सुवाल करे । (dua religion)

( 7 ) रन्जो मुसीबत से घबरा कर अपने मरने की दुआ न करे । खयाल रहे कि दुन्यवी नुक्सान से बचने के लिये मौत की तमन्ना ना जाइज़ है और दीनी मुर्रत ( या'नी दीनी नुक्सान ) के खौफ़ से जाइज़ (Most Powerful)

( 8 ) बिला ज़रूरते शर - ई किसी के मरने और ख़राबी ( बरबादी ) की दुआ न करे , अलबत्ता अगर किसी काफ़िर के ईमान न लाने पर यकीन या ज़न्ने गालिब हो और ( उस के ) जीने से दीन का नुक्सान हो या किसी ज़ालिम से तौबा और जुल्म छोड़ने की उम्मीद न हो और उस का मरना , तबाह होना मलूक के हक़ में मुफीद हो तो ऐसे शख्स पर बद दुआ करना दुरुस्त है । 

( 9 ) किसी मुसल्मान को येह बद दुआ न दे कि “ तू काफ़िर हो जाए कि बा'ज़ उ - लमा के नज़दीक ( ऐसी दुआ मांगना ) कुफ्र है और तहक़ीक़ येह है कि अगर कुफ्र को अच्छा या इस्लाम को बुरा जान कर कहे तो बेशक कुफ्र है वरना बड़ा गुनाह है कि मुसल्मान की बद ख़्वाही ( या'नी बुरा चाहना ) हराम है , खुसूसन येह बद ख़्वाही ( कि फुलां का ईमान बरबाद हो जाए ) तो सब बद ख्वाहियों से बदतर है 

( 10 ) किसी मुसल्मान पर ला'नत न करे और उसे मरदूद व मल्ऊन न कहे और जिस काफ़िर का कुफ्र पर मरना यक़ीनी नहीं उस पर भी नाम ले कर ला'नत न करे ।

( 11 ) किसी मुसल्मान को येह बद दुआ न दे कि " तुझ पर खुदा Jat का ग़ज़ब नाज़िल हो और तू ( भाड़ और ) आग या दोज़ख में दाखिल हो । " कि हदीस शरीफ़ में इस की मुमा - न - अत वारिद है ।

( 12 ) जो काफ़िर मरा उस के लिये दुआए मरिफ़रत हराम व कुफ्र है । 

( 13 ) येह दुआ करना , " खुदाया ! सब मुसल्मानों के सब गुनाह बख़्श दे । " जाइज़ नहीं कि इस में उन अहादीसे मुबा - रका की तक्ज़ीब ( या'नी झुटलाना ) होती है जिन में बा'ज़ मुसल्मान का दोज़ख़ में जाना वारिद हुवा।  अलबत्ता यूं दुआ करना " सारी उम्मते मुहम्मद की मग्फ़िरत ( या'नी बख्रिाश ) हो या सारे मुसल्मानों की मरिफ़रत हो " जाइज़ है ।

( 14 ) अपने लिये और अपने दोस्त अहबाब , अहलो माल और औलाद के लिये बद दुआ न करे , क्या मा'लूम कि कबूलिय्यत का वक़्त हो और बद दुआ का असर ज़ाहिर होने पर नदामत हो । 

( 15 ) जो चीज़ हासिल हो ( या'नी अपने पास मौजूद हो ) उस की दुआ न करे म - सलन मर्द यूं न कहे , “ या अल्लाह ने मुझे मर्द कर दे " कि इस्तिहज़ा ( मज़ाक बनाना ) है अलबत्ता ऐसी दुआ जिस में शरीअत के हुक्म की ता'मील या आजिज़ी व बन्दगी का इज़हार या परवर्द गार 5 और मदीने के ताजदार से महब्बत या दीन या अहले दीन की तरफ़ रग्बत या कुफ्रो काफ़िरीन से नफरत वगैरा के फ़वाइद निकलते हों वोह जाइज़ है अगर्चे इस अम्र का हुसूल यकीनी हो । जैसे दुरूद शरीफ़ पढ़ना वसीले की , सिराते मुस्तकीम की अल्लाह व रसूल के दुश्मनों पर ग़ज़ब व ला'नत की दुआ करना । 

( 16 ) दुआ में तंगी न करे म - सलन यूं न मांगे या अल्लाह तन्हा मुझ पर रहूम फ़रमा या सिर्फ मुझे और मेरे फुलां फुलां दोस्त को ने मत बख़्श । बेहतर यह है कि सब मुसल्मानों को दुआ में शामिल कर ले इस का एक फ़ाएदा येह भी होगा कि अगर खुद उस नेक बात का हक़दार न भी हुवा तो अच्छे मुसल्मानों के तुफैल पा लेगा । 

( 17 ) हुज्जतुल इस्लाम हज़रते सय्यिदुना इमाम मुहम्मद गज़ाली फ़रमाते हैं : मज़बूत अकीदे के साथ दुआ (Dua) मांगे और कबूलिय्यत का यकीन रखे ।  

Dua E Qoonut 

 

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دعاء القنوت بالعربية /
Dua E Qoonut In Arabic / दुआ ऐ क़ुनूत हिंदी में

 

  • اَللَّهُمَّ إنا نَسْتَعِينُكَ وَنَسْتَغْفِرُكَ وَنُؤْمِنُ بِكَ وَنَتَوَكَّلُ عَلَيْكَ وَنُثْنِئْ عَلَيْكَ الخَيْرَ وَنَشْكُرُكَ وَلَا نَكْفُرُكَ وَنَخْلَعُ وَنَتْرُكُ مَنْ ئَّفْجُرُكَ اَللَّهُمَّ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَلَكَ نُصَلِّئ وَنَسْجُدُ وَإِلَيْكَ نَسْعأئ وَنَحْفِدُ وَنَرْجُو رَحْمَتَكَ وَنَخْشآئ عَذَابَكَ إِنَّ عَذَابَكَ بِالكُفَّارِ مُلْحَقٌ


دعاء القنوت بالعربية / Dua E Qoonut In Arabic / दुआ ऐ क़ुनूत हिंदी में

 

  • Oh God, Nstaenk and Nstgfrck and believe in you and trust in you and you Ntni and thank goodness not Nkfrck and take off and leave the Ifjrk O beware of worship and you Nsali and worship Here Nsaoi and Nhvd hope and mercy and Nkhcai Amabk The Amabk infidels extension


دعاء القنوت بالعربية / Dua E Qoonut In Arabic / दुआ ऐ क़ुनूत हिंदी में

 

दुआ (Dua) के बारे में कुछ ख़ास बाते

अहसनुल विआए लि आदाबिद्दुआअ पर आला हज़रत , इमामे अहले सुन्नत , मौलाना शाह अहमद रज़ा खान ने हाशिया-मार्जिन लिखते है तहरीर फ़रमाया है । और उस का नाम जैलुल मुद्दआ ' लि अहसनिल विआअ रखा है । इसी हाशिये-मार्जिन में एक मकाम पर दुआ की क़बूलिय्यत-स्वीकार में जल्दी मचाने वालों को अपने मख्सूस और निहायत-बिल्कुल सही ही इल्मी अन्दाज़ में समझाते हुए फ़रमाते हैं : अफसरों के पासतो बार बार धक्के खाते हो मगर .. सगाने- दुन्या ( या'नी दुन्यवी अप्सरों ) के उम्मीदवारों ( या'नी उन से काम निकलवाने के आरजू मन्दों ) को देखा जाता है कि तीन तीन बरस तक उम्मीद वारी ( और इन्तिज़ार ) में गुजारते हैं , सुब्हो शाम उन के दरवाजों पर दौड़ते हैं , ( धक्के खाते हैं ) और वोह ( अप्सरान ) हैं कि रुख नहीं मिलाते , जवाब नहीं देते , झिड़कते , दिल तंग होते , नाक भौं चढ़ाते हैं , 

उम्मीद वारी में लगाया तो बेगार ( बेकार मेहनत ) सर पर डाली , येह हज़रत गिरेह ( या'नी उम्मीद वार जेब से खाते , घर से मंगाते , बेकार बेगार ( फुजूल मेहनत ) की बला उठाते हैं , और वहां ( या'नी अफसरों के पास धक्के खाने में ) बरसों गुज़रें हुनूज़ ( या'नी अभी तक गोया ) रोजे अव्वल ( ही ) है । मगर येह ( दुन्यवी अफ्सरों के पास धक्के खाने वाले ) न उम्मीद तोडें , न ( अफ्सरों का ) पीछा छोड़ें । और अहूकमुल हाकिमीन , अक्रमुल अक्रमीन के दरवाजे पर अव्वल तो आता ही कौन है ! और आए भी तो उक्ताते , घबराते , कल का होता आज हो जाए।  एक हफ्ता कुछ पढ़ते गुज़रा और शिकायत होने लगी 

तुम्हारी दुआ कबूल होती है जब तक जल्दी न करो येह मत कहो कि मैं ने दुआ की थी क़बूल न हुई ।  बाज़ तो इस पर ऐसे जामे से बाहर ( या'नी वे क़ाबू ) हो जाते हैं कि आ'माल व अदइय्या ( या'नी अवराद और दुआओं ) के असर से बे एतिकाद , बल्कि अल्लाह के वा'दए करम से बे ए'तिमाद, ऐसों से कहा जाए कि ऐ बे हया ! बे शर्मो ! ज़रा अपने गरीबान में मुंह डालो । 

अगर कोई तुम्हारा बराबर वाला दोस्त तुम से हज़ार बार कुछ काम अपने कहे और तुम उस का एक काम न करो तो अपना काम उस से कहते हुए अव्वल तो आप लजाओ ( शरमाओ ) गे , ( कि ) हम ने तो उस का कहना किया ही नहीं अब किस मुंह से उस से काम को कहें ? और अगर गरज़ दीवानी होती है ( या'नी मतलब पड़ा तो ) कह भी दिया और उस ने ( अगर तुम्हारा काम ) न किया तो अस्लन महल्ले शिकायत न जानोगे ( या'नी इस बात पर शिकायत करोगे ही नहीं ज़ाहिर है खुद ही समझते हो ) कि हम ने ( उस का काम ) कब किया था जो वोह करता ।

उस के हुक्म बजा न लाना और अपनी दर - ख्वास्त का ख़्वाही न ख्वाही ( हर सूरत में ) कबूल चाहना कैसी बेहयाई है ! ओ अहमक ! फिर फर्क देख ! अपने सर से पाउं तक नजरे गौर कर ! एक एक रूएं में हर वक्त हर आन कितनी कितनी हज़ार दर हजार दर हज़ार सद हजार बेशुमार ने मते हैं । तू सोता है और उस के मासूम बन्दे ( या'नी फ़िरिश्ते ) तेरी हिफाज़त को पहरा दे रहे हैं , तू गुनाह कर रहा है और ( फिर भी ) सर से पाउं तक सिहुत व आफ़िय्यत , बलाओं से हिफाजत , खाने का हज़्म , फुजलात ( यानी जिस्म के अन्दर की गन्दगिर्यो ) का दफ्अ , खून की रवानी , आज़ा में ताकत , आंखों में रोशनी । 

Dua-दुआ का मर्तबा, मकबूलियत और रोज पढ़ने वाली दुआए - List of Dua
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बे हिसाब करम बे मांगे बे चाहे तुझ पर उतर रहे हैं । फिर अगर तेरी बा'ज़ ख्वाहिशें अता न हों , किस मुंह से शिकायत करता है ? तू क्या जाने कि तेरे लिये भलाई काहे में है ! तू क्या जाने कैसी सख्त बला आने वाली थी कि इस ( ब ज़ाहिर न क़बूल होने वाली ) दुआ (Dua) ने दफ्अ की , तू क्या जाने कि इस दुआ के इवज़ कैसा सवाब तेरे लिये ज़ख़ीरा हो रहा है , उस का वादा सच्चा है और कबूल की येह तीनों सूरतें हैं जिन में हर पहली , पिछली से आ'ला है । हां , बे एतिकादी आई तो यकीन जान कि मारा गया और इब्लीसे लड़न ने तुझे अपना सा कर लिया । और अल्लाह की पनाह वोह पाक है  ऐ जलील ख़ाक ! 

ऐ आबे नापाक ! अपना मुंह देख और इस अजीम शरफ़ पर गौर कर कि अपनी बारगाह में हाजिर होने , अपना पाक , मु - तआली ( या'नी बुलन्द ) नाम लेने , अपनी तरफ़ मुंह करने , अपने पुकारने की तुझे इजाजत देता है । लाखों मुरादें इस फ़ज़्ले अजीम पर निसार । ओ बे सब्रे ! ज़रा भीक मांगना सीख । इस आस्ताने रफ़ी की खाक पर लौट जा । और लिपटा रह और टिकटिकी बंधी रख कि अब देते हैं , अब देते हैं ! बल्कि पुकारने , उस से मुनाजात करने की लज्जत में ऐसा डूब जा कि इरादा व मुराद कुछ याद न रहे , यक़ीन जान कि इस दरवाजे से हरगिज़ महरूम न फिरेगा।  

जिस ने करीम के दरवाजे पर दस्तक दी तो वोह इस पर खुल गया और तौफीक अल्लाह की तरफ़ से है  दुआ (Dua) की क़बूलिय्यत में ताख़ीर तो करम है हज़रते सय्यिदुना मौलाना नकी अली ख़ान  फ़रमाते हैं , ऐ अज़ीज़ ! तेरा परवर्द गार फ़रमाता है , मैं दुआ मांगने वाले की दुआ कबूल करता  हूं जब मुझ से दुआ मांगे ।

 


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