फातिहा (ईसाले सवाब) का क्या मतलब होता है हिंदी में

फातिहा (ईसाले सवाब) का क्या मतलब होता है हिंदी में 

फातिहा (ईसाले सवाब) का क्या मतलब होता है हिंदी में

उन्नीस हुरूफ़ की निस्बत से ईसाले सवाब के 


( 1 )  फातिहा (ईसाले सवाब) के लफ़्ज़ी मा'ना हैं : “ सवाब पहुंचाना " इस को " सवाब बख़्शना " भी कहते हैं मगर बुजुर्गों के लिये " सवाब बख़्शना " कहना मुनासिब नहीं , “ सवाब न करना " कहना अदब के ज़ियादा करीब है । (फातिहा क्या है) इमाम अहमद रज़ा खान फ़रमाते हैं : हुजूरे अक्दस ख्वाह और नबी या वली को “ सवाब बख़्शना " कहना बे अ - दबी है बख़्शाना बड़े की तरफ़ से छोटे को होता है बल्कि नज्र करना या हदिय्या करना कहे । सूरह फातिहा का अमल

( 2 ) फ़र्ज़ , वाजिब , सुन्नत , नफ्ल , नमाज़ , रोज़ा , जकात , हज , तिलावत , ना'त शरीफ़ , ज़िक्रुल्लाह , दुरूद शरीफ़ , बयान , दर्स , म - दनी काफ़िले में सफ़र , म - दनी इन्आमात , अलाक़ाई दौरा बराए नेकी की दा'वत , दीनी किताब का मुता - लआ , म - दनी कामों के लिये इन्फिरादी कोशिश वगैरा हर नेक काम का फातिहा (ईसाले सवाब) कर सकते हैं ।  सूरह फातिहा का अमल

( 3 ) मय्यित का तीजा , दसवां , चालीसवां और बरसी करना बहुत अच्छे काम हैं कि येह फातिहा (ईसाले सवाब) के ही ज़राएअ हैं । शरीअत में तीजे वगैरा के अ - दमे जवाज़ ( या'नी ना जाइज़ होने ) की दलील न होना खुद दलीले जवाज़ है और मय्यित के लिये ज़िन्दों का दुआ करना कुरआने करीम से साबित है  जो कि " ईसाले सवाब " की अस्ल है । नमाज़ की पहली दुआ

चुनान्चे पारह 28 सू - रतुल हश्र आयत 10 में इर्शादे रब्बुल इबाद है तर - ज - मए कन्जुल ईमान : और वोह जो उन के बाद आए अर्ज करते हैं : ऐ हमारे रब ( 13 ) ! हमें बख़्श दे और  हमारे भाइयों को जो हम से पहले ईमान लाए । नमाज़ की पहली दुआ

( 4 ) तीजे वगैरा का खाना सिर्फ इसी सूरत में मय्यित के छोड़े हुए माल से कर सकते हैं जब कि सारे वु - रसा बालिग हों और सब के सब इजाज़त भी दें अगर एक भी वारिस ना बालिग है तो सख़्त हराम है । हां बालिग अपने हिस्से से कर सकता है । ( मुलख्खस अज़ बहारे शरीअत , जि . 1 , हिस्सा : 4 , स . 822 ) अल्लाहुम्मा फिर ली

तीजे का खाना चूंकि उमूमन दा'वत की सूरत में होता है इस लिये अग्निया के लिये जाइज़ नहीं सिर्फ गुरबा (फ़कीर) व मसाकीन खाएं , तीन दिन के बाद भी मय्यित के खाने से अग्निया ( या'नी जो फ़कीर न हों उन ) को बचना चाहिये । ( फ़तावा र - ज़विय्या जिल्द 9 सफ़हा 667 ) से मय्यित के खाने से मु - तअल्लिक़ एक मुफ़ीद सुवाल जवाब मुला - हज़ा हों , अल्लाहुम्मा फिर ली

सुवाल : मकूला ( मय्यित का खाना दिल को मुर्दा कर देता है । ) मुस्तनद कौल है , अगर मुस्तनद कौल है तो इस के क्या मा'ना हैं ? अल्हम्दु शरीफ का वजीफा

जवाब : येह तजरिबे की बात है और इस के मा'ना येह हैं कि जो तआमे मय्यित के मु - तमन्नी रहते हैं उन का दिल मर जाता है , ज़िक्र व ताअते इलाही के लिये हयात व चुस्ती उस में नहीं कि वोह अपने पेट के लुक्मे के लिये मौते मुस्लिमीन के मुन्तज़िर रहते हैं और खाना खाते वक्त मौत से गाफ़िल और उस की लज्जत में शागिल । अल्हम्दु शरीफ का वजीफा                          

( फ़तावा र - ज़विय्या मुखीजा , जि . 9 , स . 667 ) 

(6) मय्यित के घर वाले अगर तीजे का खाना पकाएं तो ( मालदार न खाएं सिर्फ फु - करा को खिलाएं जैसा कि मक - त - बतुल  बू बहारे शरीअत जिल्द अव्वल सफ़हा 853 पर है : मय्यित के घर वाले तीजे वगैरा के दिन दा'वत करें तो ना जाइज़ व बिद्अते कबीहा है कि दा'वत तो खुशी के वक्त मश्रूअ ( या'नी शर - अ के मुवाफ़िक ) है (फातिहा क्या है) न कि गम के वक़्त और अगर फु - करा को खिलाएं तो बेहतर है ।   

आ'ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान  फ़रमाते हैं : " यूंही चेहलुम या बरसी या शश्माही पर खाना बे निय्यते फातिहा (ईसाले सवाब) महज़ एक रस्मी तौर पर पकाते और " शादियों की भाजी " की तरह बरादरी में बांटते हैं , वोह भी बे अस्ल है , जिस से एहतिराज़ ( या'नी एहतियात करनी ) चाहिये । "    ( फ़तावा र - ज़विय्या मुखर्रजा , जि . 9 , स . 671 ) बल्कि येह खाना फातिहा (ईसाले सवाब) और दीगर अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ होना चाहिये (फातिहा कैसे पढ़े)  और अगर कोई फातिहा (ईसाले सवाब) के लिये खाने का एहतिमाम न भी करे तब भी कोई हरज नहीं । 

( 8 ) एक दिन के बच्चे को भी फातिहा (ईसाले सवाब) कर सकते हैं , उस का तीजा वगैरा भी करने में हरज नहीं । और जो जिन्दा हैं उन को भी फातिहा (ईसाले सवाब)  किया जा सकता है । 

( 9 ) अम्बिया व मुर - सलीन और फ़िरिश्तों और मुसल्मान जिन्नात को भी फातिहा (ईसाले सवाब) कर सकते हैं । (फातिहा कैसे पढ़े)

( 10 ) ग्यारहवीं शरीफ़ और र - जबी शरीफ़ ( या'नी 22 र - जबुल मुरज्जब को सय्यिदुना इमाम जा'फ़रे सादिक़ , के कूडे फातिहा (ईसाले सवाब) करना ) वगैरा जाइज़ है । कूडे ही में खीर खिलाना ज़रूरी नहीं दूसरे बरतन में भी खिला सकते हैं , इस को घर से बाहर भी ले जा सकते हैं ,(फातिहा की दुआ)  इस मौक़अ पर जो " कहानी " पढ़ी जाती है वोह बे अस्ल है , यासीन शरीफ़ पढ़ कर 10 कुरआने करीम ख़त्म करने का सवाब कमाइये और कुंडों के साथ साथ इस का भी फातिहा (ईसाले सवाब) कर दीजिये । 

( 11 ) दास्ताने अजीब , शहज़ादे का सर , दस बीबियों की कहानी और जनाबे सय्यिदह की कहानी वगैरा सब मन घड़त किस्से हैं , इन्हें हरगिज़ न पढ़ा करें । (फातिहा की दुआ) इसी तरह एक पेम्फलेट बनाम " वसिय्यत नामा " लोग तक्सीम करते हैं जिस में किसी “ शैख़ अहमद " का ख्वाब दर्ज है येह भी जा'ली ( या'नी नक्ली ) है इस के नीचे मख्सूस तादाद छपवा कर बांटने की फ़ज़ीलत और न तक्सीम करने के नुक्सानात वगैरा लिखे हैं उन का भी ए'तिबार मत कीजिये । 

( 12 ) औलियाए किराम की फातिहा (ईसाले सवाब) के खाने को ता'ज़ीमन " नो नियाज़ " कहते हैं और येह तब क है , इसे अमीर व गरीब सब खा सकते हैं । 

( 13 ) नियाज़ और फातिहा (ईसाले सवाब) के खाने पर फ़ातिहा पढ़ाने के लिये किसी को बुलवाना या बाहर के मेहमान को खिलाना शर्त नहीं , घर के अफ़ाद अगर खुद ही फ़ातिहा पढ़ कर खा लें जब भी कोई हरज नहीं 

( 14 ) रोज़ाना जितनी बार भी खाना हस्बे हाल अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ खाएं , उस में अगर किसी न किसी बुजुर्ग के फातिहा (ईसाले सवाब) की निय्यत कर लें तो खूब है । म - सलन नाश्ते में निय्यत कीजिये : आज के नाश्ते का सवाब सरकारे मदीना और आप ज़रीए तमाम अम्बियाए किराम : को पहुंचे । (फातिहा का अर्थ) दो पहर को निय्यत कीजिये : अभी जो खाना खाएंगे ( या खाया ) उस का सवाब सरकारे गौसे आज़म और तमाम औलियाए किराम को पहुंचे , रात को निय्यत कीजिये : अभी जो खाएंगे उस का सवाब इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा ख़ान और हर मुसल्मान मर्द व औरत को पहुंचे या हर बार सभी को ईसाले सवाब किया जाए और येही अन्सब ( या'नी ज़ियादा मुनासिब ) है । याद रहे ! फातिहा (ईसाले सवाब) सिर्फ उसी सूरत में हो सकेगा जब कि वोह खाना किसी अच्छी निय्यत से खाया जाए म - सलन इबादत पर कुव्वत हासिल करने की निय्यत से खाया तो येह खाना खाना कारे सवाब हुवा और उस का फातिहा (ईसाले सवाब) हो सकता है । अगर एक भी अच्छी निय्यत न हो तो खाना खाना मुबाह कि इस पर न सवाब न गुनाह , तो जब सवाब ही न मिला तो फातिहा (ईसाले सवाब) कैसा ! (फातिहा का अर्थ)  अलबत्ता दूसरों को बनिय्यते सवाब खिलाया हो तो उस खिलाने का सवाब ईसाल हो सकता है । 

( 15 ) अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ खाए जाने वाले खाने से पहले फातिहा (ईसाले सवाब) करें या खाने के बाद , दोनों तरह दुरुस्त है । 

( 16 ) हो सके तो हर रोज़ ( नफ्अ पर नहीं बल्कि ) अपनी बिक्री ( Sale ) का चौथाई फ़ीसद ( या'नी चार सो रुपै पर एक रुपिया ) और मुला - ज़मत करने वाले तन - ख्वाह का माहाना कम अज़ कम एक फ़ीसद सरकारे गौसे आज़म  की नियाज़ के लिये निकाल लिया करें , (फातिहा का तरीका हिंदी)  फातिहा (ईसाले सवाब) की निय्यत से इस रकम से दीनी किताबें तक़सीम करें या किसी भी नेक काम में खर्च करें.  इस की ब - र - कतें खुद ही देख लेंगे । 

( 17 ) मस्जिद या मद्रसे का कियाम स - द - कए जारिय्या और फातिहा (ईसाले सवाब) का बेहतरीन ज़रीआ है । (फातिहा का तरीका हिंदी)

( 18 ) जितनों को भी फातिहा (ईसाले सवाब) करें अल्लाह की रहमत से उम्मीद है कि सब को पूरा मिलेगा , येह नहीं कि सवाब तक्सीम हो कर टुकड़े टुकड़े मिले । फातिहा (ईसाले सवाब) करने वाले के सवाब में कोई कमी वाकेअ नहीं होती बल्कि येह उम्मीद है कि उस ने जितनों को ईसाले सवाब किया उन सब के मज्मूए के बराबर ( फातिहा (ईसाले सवाब) करने वाले ) को सवाब मिले । म - सलन कोई नेक काम किया जिस पर इस को दस नेकियां मिलीं अब इस ने दस मुर्दो को ईसाले सवाब किया तो हर एक को दस दस नेकियां पहुंचेंगी जब कि फातिहा (ईसाले सवाब) करने वाले को एक सो दस और अगर एक हज़ार को फातिहा (ईसाले सवाब) किया तो इस को दस हज़ार दस । ( और इसी कियास पर ) ( बहारे शरीअत , जि . 1 , हिस्सा : 4 , स . 850 ) फातिहा (ईसाले सवाब) सिर्फ मुसल्मान को कर सकते हैं । काफ़िर या मुरतद को फातिहा (ईसाले सवाब) करना या उस को " महूम " , जन्नती , खुल्द आशियां , बेंकठ बासी , स्वर्ग बासी कहना कुफ्र है । फातिहा (ईसाले सवाब) का तरीका

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